संस्कृत वाक्य रचना- धातु/लकार परिचय
संस्कृत वाक्य रचना- धातु/लकार परिचय
वाक्य के मुख्यतः दो भाग होते हैं।
1.कर्ता
2. क्रिया
संस्कृत भाषा के वाक्यों में *क्रिया (Verb)* के लिए *धातु* का प्रयोग की जाती है।
यथा-
रामः फलं *खादति।*
राम फल *खा रहा है।*
Ram is *Eating* an Apple.
उपर्युक्त वाक्य में *खादति* क्रिया है जो धातु के रूप में प्रयोग की जाती है।
धातुओं के दस लकार होते हैं-
" लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् ,
लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " ।
•• वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है
इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)।
•• इन दस लकारों में से
~~~~ आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है-
लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये " टित् " लकार कहे जाते हैं और
~~~~ अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है।
•• व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से
पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध (बनाए) किये जाते हैं
तब इन " टित् " और " ङित् " शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।
•• इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है।
जैसे –
••••• जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से " लट् " लकार जोड़ देंगे,
•••••• परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो " लिट् " लकार जोड़ेंगे।
(१) लट् लकार ( वर्तमान काल )
~~~~ जैसे :-
श्यामः खेलति । = श्याम खेलता है।
(२) लिट् लकार ( अनद्यतन परोक्ष भूतकाल ) जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो ।
~~~~ जैसे :--
रामः रावणं ममार । = राम ने रावण को मारा ।
(३) लुट् लकार ( अनद्यतन भविष्यत् काल ) जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो ।
~~~~ जैसे :--
सः परश्वः विद्यालयं गन्ता । = वह परसों विद्यालय जायेगा ।
(४) लृट् लकार ( सामान्य भविष्य काल ) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो ।
~~~~ जैसे :---
रामः इदं कार्यं करिष्यति । = राम यह कार्य करेगा।
(५) लेट् लकार ( यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है। )
(६) लोट् लकार ( ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है । )
~~~~ जैसे :-
• भवान् गच्छतु । = आप जाइए । ;
• सः क्रीडतु । = वह खेले । ;
• त्वं खाद । = तुम खाओ । ;
• किमहं वदानि । = क्या मैं बोलूँ ?
(७) लङ् लकार ( अनद्यतन भूत काल ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो ।
~~~~ जैसे :-
भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् । = आपने उस दिन भोजन पकाया था।
(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--
(क) आशीर्लिङ् ( किसी को आशीर्वाद देना हो । )
~~~~ जैसे :-
• भवान् जीव्यात् । = आप जीओ । ;
• त्वं सुखी भूयात् । = तुम सुखी रहो।
(ख) विधिलिङ् ( किसी को विधि बतानी हो ।)
~~~~ जैसे :-
• भवान् पठेत् । = आपको पढ़ना चाहिए। ;
• अहं गच्छेयम् । = मुझे जाना चाहिए।
(९) लुङ् लकार ( सामान्य भूत काल ) जो कभी भी बीत चुका हो ।
~~~~ जैसे :-
अहं भोजनम् अभक्षत् । = मैंने खाना खाया।
(१०) लृङ् लकार ( ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो) जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो ।
~~~~ जैसे :-
यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । = यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।
इस बात को स्मरण रखने के लिए कि
•••• धातु से कब किस लकार को जोड़ेंगे, निम्नलिखित श्लोक स्मरण कर लीजिए-
लट् वर्तमाने लेट् वेदे भूते लुङ् लङ् लिटस्तथा ।
विध्याशिषोर्लिङ् लोटौ च लुट् लृट् लृङ् च भविष्यति ॥
अर्थात्
~ लट् लकार वर्तमान काल में,
~ लेट् लकार केवल वेद में,
~ भूतकाल में लुङ् लङ् और लिट्,
~ विधि और आशीर्वाद में लिङ् और लोट् लकार तथा
~ भविष्यत् काल में लुट् लृट् और लृङ् लकारों का प्रयोग किया जाता है।)
******************************
लकारों के नाम याद रखने की विधि-
******************************
" ल् " में प्रत्याहार के क्रम से ( अ इ उ ऋ ए ओ ) जोड़ दें
और क्रमानुसार ( ट् ) जोड़ते जाऐं ।
फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाऐं जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ ।
जैसे
•• लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट्
•• लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥
इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है । लोक के लिए नौ लकार शेष रहे ।
अब इन नौ लकारों में लिङ् के दो भेद होते हैं :--
आशीर्लिङ् और विधिलिङ् ।
इस प्रकार लोक में पुनः दश लकार हो गए ।
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वाक्य के मुख्यतः दो भाग होते हैं।
1.कर्ता
2. क्रिया
संस्कृत भाषा के वाक्यों में *क्रिया (Verb)* के लिए *धातु* का प्रयोग की जाती है।
यथा-
रामः फलं *खादति।*
राम फल *खा रहा है।*
Ram is *Eating* an Apple.
उपर्युक्त वाक्य में *खादति* क्रिया है जो धातु के रूप में प्रयोग की जाती है।
धातुओं के दस लकार होते हैं-
" लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् ,
लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " ।
•• वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है
इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)।
•• इन दस लकारों में से
~~~~ आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है-
लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये " टित् " लकार कहे जाते हैं और
~~~~ अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है।
•• व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से
पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध (बनाए) किये जाते हैं
तब इन " टित् " और " ङित् " शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।
•• इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है।
जैसे –
••••• जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से " लट् " लकार जोड़ देंगे,
•••••• परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो " लिट् " लकार जोड़ेंगे।
(१) लट् लकार ( वर्तमान काल )
~~~~ जैसे :-
श्यामः खेलति । = श्याम खेलता है।
(२) लिट् लकार ( अनद्यतन परोक्ष भूतकाल ) जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो ।
~~~~ जैसे :--
रामः रावणं ममार । = राम ने रावण को मारा ।
(३) लुट् लकार ( अनद्यतन भविष्यत् काल ) जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो ।
~~~~ जैसे :--
सः परश्वः विद्यालयं गन्ता । = वह परसों विद्यालय जायेगा ।
(४) लृट् लकार ( सामान्य भविष्य काल ) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो ।
~~~~ जैसे :---
रामः इदं कार्यं करिष्यति । = राम यह कार्य करेगा।
(५) लेट् लकार ( यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है। )
(६) लोट् लकार ( ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है । )
~~~~ जैसे :-
• भवान् गच्छतु । = आप जाइए । ;
• सः क्रीडतु । = वह खेले । ;
• त्वं खाद । = तुम खाओ । ;
• किमहं वदानि । = क्या मैं बोलूँ ?
(७) लङ् लकार ( अनद्यतन भूत काल ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो ।
~~~~ जैसे :-
भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् । = आपने उस दिन भोजन पकाया था।
(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--
(क) आशीर्लिङ् ( किसी को आशीर्वाद देना हो । )
~~~~ जैसे :-
• भवान् जीव्यात् । = आप जीओ । ;
• त्वं सुखी भूयात् । = तुम सुखी रहो।
(ख) विधिलिङ् ( किसी को विधि बतानी हो ।)
~~~~ जैसे :-
• भवान् पठेत् । = आपको पढ़ना चाहिए। ;
• अहं गच्छेयम् । = मुझे जाना चाहिए।
(९) लुङ् लकार ( सामान्य भूत काल ) जो कभी भी बीत चुका हो ।
~~~~ जैसे :-
अहं भोजनम् अभक्षत् । = मैंने खाना खाया।
(१०) लृङ् लकार ( ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो) जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो ।
~~~~ जैसे :-
यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । = यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।
इस बात को स्मरण रखने के लिए कि
•••• धातु से कब किस लकार को जोड़ेंगे, निम्नलिखित श्लोक स्मरण कर लीजिए-
लट् वर्तमाने लेट् वेदे भूते लुङ् लङ् लिटस्तथा ।
विध्याशिषोर्लिङ् लोटौ च लुट् लृट् लृङ् च भविष्यति ॥
अर्थात्
~ लट् लकार वर्तमान काल में,
~ लेट् लकार केवल वेद में,
~ भूतकाल में लुङ् लङ् और लिट्,
~ विधि और आशीर्वाद में लिङ् और लोट् लकार तथा
~ भविष्यत् काल में लुट् लृट् और लृङ् लकारों का प्रयोग किया जाता है।)
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लकारों के नाम याद रखने की विधि-
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" ल् " में प्रत्याहार के क्रम से ( अ इ उ ऋ ए ओ ) जोड़ दें
और क्रमानुसार ( ट् ) जोड़ते जाऐं ।
फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाऐं जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ ।
जैसे
•• लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट्
•• लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥
इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है । लोक के लिए नौ लकार शेष रहे ।
अब इन नौ लकारों में लिङ् के दो भेद होते हैं :--
आशीर्लिङ् और विधिलिङ् ।
इस प्रकार लोक में पुनः दश लकार हो गए ।
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