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संस्कृत-घटी ( Sanskrit Clock )

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            संस्कृत-घटी ( Sanskrit Clock )             हमारे सनातन धर्म का दर्शन कराती-    12:00  के स्थान पर " आदित्याः " लिखा हुआ है जिसका अर्थ यह है कि आदित्य/ सूर्य 12 प्रकार के होते हैं- 1) चैत्र-धाता,                   2) वैशाख-अर्यमा,  3) ज्येष्ठ-मित्र                    4) आषाढ़-अरूण,  5) श्रावण-इन्द्र,                6) भाद्रपद- विवस्वान,  7)  अश्विन-पूषा ,               8) कार्तिक-पर्जन्य,  9) मार्गशीर्ष-अंशुमान,    10) पौष-भग,  11) माघ-त्वष्टा,               12) फ़ाल्गुन-जिष्णु                  --------------------------- 1:00  के स्थान पर " ब्रह्म " लिखा हुआ है इसका अर्थ यह है कि ब्रह्म एक ही है -  🕉 'एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति।'                --------------------------- 2:00  के स्थान पर " अश्विनौ " लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य यह है कि अश्विनी कुमार दो हैं-  [1) 'नासत्य',        2) 'द्स्त्र']                 --------------------------- 3:00 के स्थान पर " त्रिगुणाः " लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य यह है कि गुण तीन

6.4.2 कक्षा *षष्ठी* चतुर्थ: पाठ: (विद्यालय: - अभ्यासः ) Class 6th, Lesson - 4 ( VidyalayaH -Abhyaas)

                    6.4.2    कक्षा षष्ठी               चतुर्थ: पाठ:  (विद्यालय: -  अभ्यासः )                Class 6th, Lesson - 4                    ( VidyalayaH -Abhyaas)        ************************************  नमोनमः।  षष्ठकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-1 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।  अद्य वयं चतुर्थ-पाठस्य अभ्यासकार्यं कुर्म: ।  पाठस्य नाम अस्ति -  विद्यालय:।  अहं डॉ. विपिन:।         ************************************                             अभ्यासः   प्रश्न 1: उच्चारणं कुरुत | अहम् (मैं)        आवाम्   (हम दोनों)     वयम् (हम सब) माम् (मुझको)  आवाम्(हम दोनों को)  अस्मान् (हम सब को) मम(मेरा)      आवय़ोः(हम दोनों का)  अस्माकम्(हम सबका)  त्वम् (तुम)         युवाम्  (तुम दो)           यूयम् (तुम सब) त्वाम्(तुम को)   युवाम्(तुम दोनों को)   युष्मान् (तुम सब को) तव (तेरा)     युवयोः (तुम दोनों का)   युष्माकम् (तुम सबका) उत्तराणि (ANSWER) विद्यार्थी स्वयं उच्चारण करेंगे।  प्रश्न 2: निर्देशानुसारं परिवर्तनं कुरुत – यथा – अहं पठामि।–(बहुवचने )–वयं पठामः। (क) अहं नृत्यामि।–(बहुवचने

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7.4 Sanskrit, Class 7, Lesson4, Hasya-Baal-Kavi-SammelanaM English Translation

Four hair poets holding various types of costumes are sitting on the stage. Listener people are keen to listen to humorous poems and are making noise. At the same time, the operators say you do not make noise, it is very happy today that there is a great comic poet of India’s era of ruining poetry and ruining time in this poet convention. (Operators have been crooned here). Let’s welcome them with applause. Only then a poet whose name is Ghazdhar comes up and starts to speak and greet all the monotonous people. (Here you can see again the satire is being spoken so that people laughed …). Firstly I recite my poem about the modern Vaidya – Vaidyaraj! O Yama’s brother, you are my hello. Yama Raj only defeats life, but Vaidya departs both life and wealth. Everyone laughed loudly on this matter …. Then the second poet whose name is Kalantak comes up and says, ‘Hey Vaidya is in all places but I am not skilled in reducing the population like me. (This poet has saturated here). You also hear m

संस्कृत-प्रश्नोत्तराणि

संस्कृतम् १) sanskrit संस्कृत पढ़कर नौकरी नहीं मिलने वाली है तो संस्कृत क्यों पढ़ें ? उत्तर: क्या नौकरी पाना ही जीवन का लक्ष्य है , या आनन्द पाना ??? आनंद तभी मिलेगा जब अविद्या का नाश होकर पवित्रता आएगी. विद्या तपोभ्याम भूतात्मा शुध्यति (विद्या और तप से ही जीवात्मा पवित्र होता है.) - मनुस्मृति संस्कृत पढने से अपनी संस्कृति से जुड़ेंगे. जो ज्ञान पाना चाहते हैं उन्हें संस्कृत पढना ही चाहिए , जिन्हें केवल धन से मतलब है वे कुछ भी करें. " विद्या विनय देती है , विनय से पात्रता ( Deserveness) आती है , पात्रता से धन आता है , धर्म द्वारा अर्जित धन से सुख की प्राप्ति होती है." - आचार्य चाणक्य सभी सत्य-विद्याओं का मूल वेद में है. वेद से ही संस्कृत भाषा की उत्पत्ति हुई है. अतः संस्कृत पढना चाहिए. २) संस्कृत भाषा बहुत कठिन है ? रटने से क्या फायदा ? उत्तर: रूचि ( interest) एवं पुरुषार्थ ( continuous effort) हो तो कुछ भी कठिन नहीं. धन कमाने एवं अन्य व्यर्थ के कार्यों से अवकाश मिले तब तो संस्कृत सीखेंगे. Excuses ( बहानों) की कमी नहीं है. उद्यमेन ही सिद्ध्यन्ति कार्याणि ना मनोरथै: | न हि सुप्त