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Showing posts from April, 2018

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योग-शास्त्रस्य वर्णनम् (हिंदी)

     योग-शास्त्र का वर्णन योगशास्त्र का वर्णन हमें वेदों, उपनिषदों तथा गीता में प्राप्त होता है, परन्तु *पतंजलि* आदि मनिषियों ने योग के बिखरे हुए मोतियों (ज्ञान) को व्यवस्थित रूप से संग्रहित कर लिपिबद्ध किया है। योग छह आस्तिक दर्शनों में से एक है- ये छह दर्शन हैं:-- 1.न्याय 2.वैशेषिक 3.मीमांसा 4.सांख्य 5.वेदांत और 6.योग।* योग के विषय विस्तृत ज्ञान- योग के आठ मुख्य अंग हैं:-- 1) *यम, 2) ‎नियम, 3) ‎आसन, 4) ‎ प्राणायाम, 5) ‎प्रत्याहार, 6) ‎धारणा, 7) ‎ध्यान और 8) ‎समाधि।* इसके अलावा क्रिया, बंध, मुद्रा और अंग-संचालन इत्यादि कुछ अन्य अंग भी गिने जाते हैं, किंतु ये सभी उन आठों के ही उपांग ( उप-अंग ) हैं। अब हम योग के प्रकार, योगाभ्यास की बाधाएं, योग का इतिहास, योग के प्रमुख ग्रंथ की थोड़ी चर्चा करते हैं। *योग के प्रकार:--* 1.राजयोग, 2.हठयोग, 3.लययोग, 4. ज्ञानयोग, 5.कर्मयोग और 6. भक्तियोग। इसके अलावा बहिरंग योग, नाद योग, मंत्र योग, तंत्र योग, कुंडलिनी योग, साधना योग, क्रिया योग, सहज योग, मुद्रायोग, और स्वरयोग आदि योग के अनेक आयामों की चर्चा की जाती है। परंतु यह सभी उक्त छह में समाहित हैं। *अष्

भारतीय संस्कारों से संबंधित श्लोक

।। भारतीय संस्कार ।। निम्न श्लोकों को नित्य दैनन्दिनी में शामिल करना चाहिए- *प्रात: कर-दर्शनम्* कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती। करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥ *पृथ्वी क्षमा प्रार्थना* समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमंडिते। विष्णु पत्नि नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमस्व मे॥ *त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण* ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥ *स्नान मन्त्र* गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु॥ *सूर्यनमस्कार* ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च।। आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने। दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम् सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥ ॐ मित्राय नम: ॐ रवये नम: ॐ सूर्याय नम: ॐ भानवे नम: ॐ खगाय नम: ॐ पूष्णे नम: ॐ हिरण्यगर्भाय नम: ॐ मरीचये नम: ॐ आदित्याय नम: ॐ सवित्रे नम: ॐ अर्काय नम: ॐ भास्कराय नम: ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम: आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम भास्कर। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥ *संध्या दीप दर्शन* शुभं करोतु कल्याणम्

About Sanskrit

After the Constitution, the next and perhaps most important document to examine would be the Report of the Sanskrit Commission set up by the Government of India in 1956 under the Chairmanship of Dr. Suniti Kumar Chatterjee. An examination of the Report of this Commission shows that the status of Sanskrit in contemporary India has a lot to do with both the politics and policies of the State. It was this Commission’s report, along with Report of the Official Language Commission of the Government of India that led to Sanskrit being one of the languages taught in Indian schools all over the country. According to the three-language formula, which still works at least up to the 10th Standard in Indian secondary schools, each student has to learn three languages, the mother tongue, Hindi or another Indian language, and English. To this day, in many school, Sanskrit is the third language, taken in addition to English and Hindi. The Report of the Commission is probably the most extensive and im

एकता मंत्र ( Ekta Mantra ) यं वैदिका मन्त्रदृशः पुराणाः......

   एकता मंत्र ( Ekta Mantra ) - यं वैदिका मन्त्रदृशः पुराणाः इन्द्रं यमं मातरिश्वा नमाहुः। वेदान्तिनो निर्वचनीयमेकम् यं ब्रह्म शब्देन विनिर्दिशन्ति॥ शैवायमीशं शिव इत्यवोचन् यं वैष्णवा विष्णुरिति स्तुवन्ति। बुद्धस्तथार्हन् इति बौद्ध जैनाः सत् श्री अकालेति च सिख्ख सन्तः॥ शास्तेति केचित् कतिचित् कुमारः  स्वामीति मातेति पितेति भक्त्या। यं प्रार्थन्यन्ते जगदीशितारम्  स एक एव प्रभुरद्वितीयः॥ प्राचीन काल के मन्त्रद्रष्टा ऋषियों ने जिसे इंद्र , यम , मातरिश्वान (वैदिका देवता) कहकर पुकारा और जिस एक अनिर्वचनीय को वेदान्ती ब्रह्म शब्द से निर्देश करते हैं। शैव जिसकी शिव और वैष्णव जिसकी विष्णु कहकर स्तुति करते हैं। बौद्ध और जैन जिसे बुद्ध और अर्हन्त कहते हैं तथा सिक्ख सन्त जिसे सत् श्री अकाल कहकर पुकारते हैं। जिस जगत के स्वामी को कोई शास्ता तो कोई प्रकृति , कोई कुमारस्वामी कहते हैं तो कोई जिसको स्वामी , माता-पिता कहकर भक्तिपूर्वक प्रार्थना करते हैं , वह प्रभु एक ही है अर्थात् अद्वितीय है । ------ Meaning: Whom (Yam) the Vaidika Mantradrashah (those who have understood the Vedas and to whom the mantr

Photos वदतु संस्कृतम्। जयतु भारतम्।

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धार्मिकाः श्लोकाः मंत्राः च-----

धार्मिकाः श्लोकाः मंत्राः च----- ☀ प्रात: कर-दर्शनम् - कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम॥ पृथ्वी क्षमा प्रार्थना - समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते। विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥ स्नान मन्त्र- गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥ सूर्यनमस्कार- ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने। दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम् सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥ ॐ मित्राय नम:, ॐ रवये नम:, ॐ सूर्याय नम:,   ॐभानवे नम:,ॐ खगाय नम:,ॐ पूष्णे नम:,   ॐ हिरण्यगर्भाय नम:,ॐ मरीचये नम:, ॐ आदित्याय नम: ॐ सवित्रे नम:, ॐ अर्काय नम:, ॐ भास्कराय नम:,   ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम: आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥ ♨ दीप दर्शन- शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा। शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥ दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः। दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥   तिलक मंत्र- ऊँ आदित्या विश्वोदेवाः व

स्मरणीयाः सूक्त्यः श्लोकाः च (Sanskrit Shalok / Thoughts)

स्मरणीयाः  सूक्त्यः श्लोकाः च  (Sanskrit Shalok / Thoughts)-   सर्वे भवन्तु सुखिनः,  सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । अर्थ- हे प्रभु ! सभी सुखी रहें,  सभी स्वस्थ रहें,   सभी का कल्याण हो तथा इस संसार में कोई दुखी न हो । --------------- ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवाः।  भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा गूँ सस्तनूभिः।  व्यशेमहि देवहितं यदायुः।। अर्थ- हे प्रभु ! हम अपने कानों से जो भी सुने वह पवित्र एवं कल्याणकारी हो । आँखों से जो भी देखें वह पवित्र एवं कल्याणकारी हो । हम मजबूत एवं स्वस्थ शरीर युक्त होकर सन्तोष-पूर्वक जीवन यापन करें तथा अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में प्रभु के गुणों का गुणगान करते रहें।। --------------- अलसस्य कुतो विद्या , अविद्यस्य कुतो धनम्। अधनस्य कुतो मित्रम् , अमित्रस्य कुतः सुखम्।। अर्थ- आलसी को विद्या, अनपढ़ / मूर्ख को धन, निर्धन को मित्र और अमित्र को सुख की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती । --------------- असंशयं महाबाहो ! मनो दुर्निग्रहं चलम् । अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।। (गीता 6.35) अर्थ- हे महा

संस्कृत-भाषायाः महत्तवम् ( संस्कृतम्)

संस्कृत-भाषायाः महत्तवम्  ( ०१ ) संस्कृतम् अस्माकं जीवनस्य दिग्दर्शनं करोति । जीवनस्य लक्ष्यम् उन्नतं भवति । ( ०२ ) स्वविषय-ज्ञानेन सह संस्कृतमपि जानीमः चेत् प्रतिष्ठा प्राप्यते । ( ०३ ) अस्माकं संस्कारार्थं संस्कृतम् आवश्यकम्। अस्माकं सर्वे संस्काराः मन्त्रसहिताः सन्ति । ( ०४ ) संस्कृतस्य वर्णमाला वैज्ञानिकी अस्ति । संस्कृतं वैज्ञानिकी , श्रेष्ठतमोच्चारणशास्त्रयुक्ता , परिपूर्णा भाषा । ( Scientific, Phonetic and Perfect language ) ( ०५ ) संस्कृतोच्चारणेन अन्यभाषाणाम् उच्चारणं सुलभं भवति । संस्कृतकारणेन भारतीयभाषाः समृद्धाः भवन्ति । ( ०६ ) संस्कृतस्य उच्चारणेन मस्तिष्कस्य भागद्वयस्यापि विकासः भवति । संस्कृतं केवलं वर्गविशिष्टस्य भाषा न , अपितु सर्वेषाम् । ( यथा - जाबाल: , व्यासः , वाल्मीकिः इत्यादयः ) ( ०७ ) भाषाभावैक्यार्थं सामाजिकसमरसतार्थं च संस्कृतमावश्यकम् । तेनैव उच्चनीच-स्पृश्यास्पृश्यभेदनिवारणं भवति । ( ०८ ) १९४९ तमे वर्षे डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकरः ' भारतस्य राजभाषा संस्कृतं भवतु ' इति प्रस्तावम् आनीतवान् । अन्य-विरोध-कारणतः सा अद्य तादृशं स्थानं न प्राप्तवति इति तु दुर्द