सुविचार: (Thought)

आदरात् संगृहीतेन शत्रुणा शत्रुमुद्धरेत्|
पादलग्नं करस्थेन कण्टकेनैव कण्टकम्||
अर्थ- आदर देकर वश में किये हुए शत्रु से शत्रु को नष्ट करना चाहिए| जैसे यदि पाँव में काँटा चुभ जाए, तो उसे हाथ में पकड़े काँटे से ही निकाला जाता है। व्यक्ति को चाहिए कि वह शत्रु को भी आदर दें इससे शत्रुता स्वयं ही नष्ट हो जाती है।

Comments

Popular posts from this blog

उच्चारण-स्थानानि (Uccharan Sthaan)

प्रार्थना-सभा-आदेशाः (Morning Assembly Commands)

चल चल पुरतो निधेहि चरणम् (Chal Chal Puruto- Sanskrit Song)