7.2 कक्षा - सप्तमी, विषय: - संस्कृतम् द्वितीय: पाठ: (दुर्बुद्धि: विनश्यति ) Class 7th, Subject - Sanskrit Lesson-2 (DurbudhiH Vinashyati)
7.2 कक्षा - सप्तमी, विषय: - संस्कृतम्
द्वितीय: पाठ: (दुर्बुद्धि: विनश्यति )
Class 7th, Subject - Sanskrit
Lesson-2 (DurbudhiH Vinashyati)
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नमोनमः।
सप्तमीकक्ष्यायाः रुचिरा भाग- 2
इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।
अद्य वयं द्वितीयं पाठं पठामः।
पाठस्य नाम अस्ति - दुर्बुद्धि: विनश्यति
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दुर्बुद्धि: विनश्यति
दुर्बुद्धि: = दुर्+बुद्धिः।
दुर्बुद्धि शब्द बुद्धिः से पूर्व दुर् उपसर्ग के जुड़ने से बना है। दुर् का अर्थ होता है- बुरा (bad), तथा कठिन (difficult)।
इस संदर्भ में दुर्बुद्धि का अर्थ हुआ बुरी / मूर्ख बुद्धि।
विनश्यति - का अर्थ है नष्ट होना अथवा मरना।
इस प्रकार "दुर्बुद्धि: विनश्यति" का अर्थ है मूर्ख नष्ट हो जाता है अथवा मारा जाता है।
इस पाठ में हम हंस और कछुए की कहानी के माध्यम से मूर्ख व्यक्ति को होने वाली हानि के विषय में पढ़ेंगे। यह पाठ शिक्षा देता है की हमें सदा अपने अच्छे मित्रों की बात माननी चाहिए और असमय नहीं बोलना चाहिए।
प्रस्तुत पाठ प्रसिद्ध कथाग्रंथ "पंचतंत्र" से लिया गया है जिसके रचयिता "विष्णु शर्मा" है।
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द्वितीयः पाठः
अस्ति मगधदेशे फुल्लोत्पलनाम सरः।
अर्थ-
मगध देश में पुफल्लोत्पल नामक एक तालाब था।
तत्र संकटविकटौ हंसौ निवसतः।
अर्थ-
वहां संकट और विकट नाम के दो हंस रहते थे।
कम्बुग्रीवनामकः तयोः मित्रम् एकः कूर्मः अपि तत्रैव प्रतिवसति स्म।
अर्थ-
कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ भी वहीं रहता था।
अथ एकदा धीवराः तत्र आगच्छन्।
अर्थ-
एक बार कुछ मछुआरे वहां आए।
ते अकथयन् - वयं श्वः मत्स्यकूर्मार्दीन् मारयिष्यामः।
अर्थ-
उन्होंने कहा - हम कल मछलियां, कछुए आदि को मारेंगे।
एतत् श्रुत्वा कूर्मः अवदत्- ‘‘मित्रे! किं युवाभ्यां धीवराणां वार्ता श्रुता?
अर्थ-
यह सुनकर कछुआ वाला - दोस्तों क्या तुमने मछुआरों की बात सुनी?
अधुना किम् अहं करामि?’’
अर्थ-
अब मैं क्या करूं?
हसौ अवदताम् - ‘‘प्रातः यद् उचितं तत्कर्त्तव्यम्।’’
अर्थ-
हंसों ने कहा - सुबह जो ठीक होगा वह करते हैं।
कूर्मः अवदत्- ‘‘मैवम् (मा + एवम्)।
अर्थ-
कछुआ बोला- नहीं।
यद् यथाsहम् अन्यं ह्रदं गच्छामि तथा कुरुतम्।’’
अर्थ-
मैं अन्य तालाब को जाना चाहता है अतः वैसा करो।
हंसौ अवदताम्-‘‘आवां किं करवाव?’’
अर्थ-
हंस बोले - हम क्या करें।
कूर्मः अवदत्- ‘‘अहं युवाभ्यां सह आकाशमार्गेण
अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि।’’
अर्थ-
कछुआ बोला - मैं तुम दोनों के साथ आकाश मार्ग से कहीं और जाना चाहता हूं।
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हंसौ अवदताम्-‘‘अत्र कः उपायः?’’
अर्थ-
हंस बोले - यह कैसे संभव है?
कच्छपः वदति-‘‘युवां काष्ठदण्डम् एकं चञ्च्वा धरयताम्।
अर्थ-
कछुआ बोला - तुम दोनों लकड़ी के डंडे को अपनी चोंच में पकड़ (धारण कर) लेना।
अहं काष्ठदण्डमध्ये अवलम्ब्य युवयोः पक्षबलेन सुखेन गमिष्यामि।’’
अर्थ-
मैं लकड़ी के डंडे के बीच में लटककर तुम्हारे पंखों की सहायता से कहीं और चला जाऊंगा।
हंसौ अकथयताम्- ‘‘सम्भवति एषः उपायः।
अर्थ-
दोनों हंस बोले - यह उपाय हो सकता है।
किन्तु अत्र एकः अपायोsपि वर्तते।
अर्थ-
परंतु यहां एक हानि / समस्या भी है।
आवाभ्यां नीयमानं त्वामवलोक्य ( त्वाम्+ अवलोक्य) जनाः किञ्चिद् वदिष्यन्ति एव।
अर्थ-
हमारे द्वारा ले जाते हुए तुम्हें देखकर लोग कुछ अवश्य कहेंगे।
यदि त्वमुत्तरं (त्वम्+ उत्तरं) दास्यसि तदा तव मरणं निश्चितम्।
अर्थ-
यदि तुम उत्तर दोगे तो तुम्हारा मरना निश्चित है।
अतः त्वम् अत्रैव (अत्र+एव) वस।
अर्थ-
इसलिए तुम यहीं रहो।
तत् श्रुत्वा क्रुद्धः कूर्मः अवदत्- ‘‘किमहं (किम्+अहं) मूर्खः?
अर्थ-
यह सुनकर कछुआ गुस्से में बोला - क्या मैं मूर्ख हूंँ?
उत्तरं न दास्यामि।
अर्थ-
उत्तर नहीं दूंगा।
किञ्चिदपि (किञ्चिद्+अपि) न वदिष्यामि।’’
अर्थ-
कुछ भी नहीं बोलूंगा।
अतः अहं यथा वदामि तथा युवां कुरुतम्।
अर्थ-
इसलिए मैं जैसा बोलता हूं वैसा तुम दोनों करो।
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एवं काष्ठदण्डे लम्बमानं कूर्मं पौराः अपश्यन्।
अर्थ-
इस प्रकार लकड़ी के डंडे में लटकते हुए कछुए को लोगों ने देखा।
पश्चाद् अधावन् अवदन् च- ‘‘हंहो!
अर्थ-
और पीछे भागते हुए बोले - अरे।
महदाश्चर्यम् (महद्+आश्चर्यम् )।
अर्थ-
बहुत बड़े आश्चर्य की बात है।
हंसाभ्यां सह कूर्मोsपि उड्डीयते।’’
हंसों के साथ कछुआ भी उड़ रहा है।
कश्चिद्वदतिज़- ‘‘यद्ययं (यदि+अयं) कूर्मः कथमपि निपतति तदा अत्रैव पक्त्वा खादिष्यामि।’’
कोई बोला - यदि यह कछुआ कहीं गिरता है तो मैं यहीं पकाकर खा जाऊंगा।
अपरः अवदत् - ‘‘सरस्तीरे दग्ध्वा खादिष्यामि’’।
दूसरा बोला - नदी के तट पर पकाकर खा जाऊंगा।
अन्यः अकथयत्- ‘‘गृहं नीत्वा भक्षयिष्यामि’’ इति।
कोई और बोला - घर में ले जाकर खा जाऊंगा।
तेषां तद् वचनं श्रुत्वा कूर्मः क्रुद्धः जातः।
उनकी बातें सुनकर कछुआ क्रोधित हो गया।
मित्राभ्यां दत्तं वचनं विस्मृत्य सः अवदत् - ‘‘यूयं भस्म खादत।’’
मित्रों को दिए गए वचन को भूलकर वह बोला - तुम लोग राख खाओ।
तत्क्षणमेव (तत्क्षणम्+एव) कूर्मः दण्डात् भूमौ पतितः।
उसी समय कछुआ डंडे से धरती पर गिर गया।
पौरेः सः मारितः।
लोगों ने उसे मार दिया।
अत एवोक्तम् (एव+उक्तम्)-
इसीलिए कहा गया है-
सुहृदां हितकामानां वाक्यं यो नाभिनन्दति।
स कूर्म इव दुर्बुद्धि: काष्ठाद् भ्रष्टो विनश्यति।।
सरलार्थ -
जो अच्छे दोस्तों द्वारा कही गई हित की बातों को नहीं मानता, वह मूर्ख कछुए की तरह ही लकड़ी से गिरकर मारा जाता है।
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-- शब्दार्थाः --
1) सरः - तालाब
2) कूर्मः/कच्छपः - कछुआ
3) प्रतिवसति स्म - रहता था
4) धीवराः. - मछुआरे
5) मत्स्यवूफर्मादीन् - मछली, कछुआ आदि को
7) मारयिष्यामः. - मारेंगे
8) मैवम् ; मा एवम्. - ऐसा नहीं
9) धरयताम् - धरण करें
10) पक्षबलेन - पंखो के बल से
11) अपायः - हानि
12) नीयमानम् - ले जाते हुए
13) अवलोक्य - देखकर
14) लम्बमानम् - लटकते हुए
15) उड्डीयते - उड़ रहा है
16) विस्मृत्य - भूल कर
17) भस्म - राख
18) सुहृदाम् - मित्रों का/के/की
19) हितकामानाम् - कल्याण की इच्छा
20) अभिनन्दति - प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता/करती है
21) दुर्बुद्धिः - दुष्ट बुद्धि वाला ।
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(1) पठनाय (Lesson in PDF) -
https://drive.google.com/file/d/1djDv6JgdMR7ful9cLuJWszZjdjIOtbiH/view?usp=drivesdk
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(2) श्रवणाय (Audio )-
https://drive.google.com/file/d/1mPR-FD8_mtBHERwoLkaUMoq0WWGkxB58/view?usp=drivesdk
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(3) दर्शनाय - दृश्य-श्रव्य (Video )
1.1 पाठ:
https://youtu.be/yl1f5_0NHAY
OnlinesamskrTutorial
पाठस्य कथा
https://youtu.be/fYO2qgVeypI
By SANSKRIT PRAGAYAN (Pankaj ji )
पाठ अर्थ सहित तथा अभ्यास के अर्थ सहित
https://youtu.be/rWyRQh2omCc
By Kailash Sharma
1.2 अभ्यास:
https://youtu.be/0A8_fu9Kt5w
OnlinesamskrTutorial
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(4) अभ्यासाय (B2B Worksheet)
https://drive.google.com/file/d/1i0gAj732HhZN6pjKDU66BG-mmSUed_KB/view?usp=drivesdk
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(5) अभ्यास-कार्यम् -प्रश्नोत्तराणि
(Lesson Exercise - )
https://drive.google.com/file/d/1avgb3gbBaaQY8baWQ7f64sRvlmVVBpif/view?usp=drivesdk
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प्रेरणादायक गीत
ये वक्त न ठहरा है ये वक्त न ठहरेगा (गीत)
https://youtu.be/Kshr8cDF9D0
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