8.1 कक्षा अष्टमी, प्रथम: पाठ: (सुभाषितानि ) Class 8th, Lesson-1 (Subhashitaani )
8.1 कक्षा अष्टमी, प्रथम: पाठ: (सुभाषितानि )
Class 8th, Lesson-1 (Subhashitaani )
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नमोनमः।
अष्टमीकक्ष्यायाः रुचिरा भाग- 3 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।
अद्य वयं प्रथमं पाठं पठामः।
पाठस्य नाम अस्ति सुभाषितानि।
सुभाषितानि = सु + भाषितानि
भाषितम् (नपुंसकलिङ्गम्)
भाषितम् भाषिते भाषितानि
सु - सुन्दरम्/ उत्तमम् / शोभनम्
भाषितम् - वचनम् / विचारः
अतः - सुन्दरम् वचनम् (Good Saying )
सु- सुन्दर/ मधुर/ अच्छी
भाषितानि- वचन/ बातें
'सुभाषित' शब्द 'सु+भाषित' इन दो शब्दों के मेल से बना है। सु का अर्थ सुंदर/ मधुर और भाषित का अर्थ वचन है। इस तरह सुभाषित का अर्थ सुन्दर/ मधुर वचन है।
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गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।। 1।।
सरलीकृत्वा (पदविभाग:)-
गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
सुस्वादु-तोयाः प्रभवन्ति नद्यः
समुद्रम्-आसाद्य भवन्ति-अपेयाः ।। 1।।
शब्दार्थाः-
1) गुणज्ञेषु = गुणियों के
2) सुस्वादुतोयाः = स्वादिष्ट जल
3) प्रभवन्ति = निकलती है / उत्पन्न होती है
4) समुद्रमासाद्य ( समुद्रम् + आसाद्य) = समुद्र में मिलकर पहुँचकर
5) भवन्त्यपेयाः (भवन्ति + अपेयाः) = पीने योग्य नहीं होती
सरलार्थ-
गुणवान लोग यदि गुणवान लोगों के साथ रहे तो वे गुणवान ही रहते हैं परंतु यदि वे निर्गुण अर्थात् दुष्ट लोगों के साथ रहे तो वे भी दुष्ट हो जाते हैं। जिस प्रकार नदियों में बहाने वाला मीठा जल समुद्र में मिलकर पीने योग्य नहीं रहता।
व्याख्या-
विद्वान और गुणी व्यक्तियों के पास जाकर गुण, सद्गुण के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं, परंतु वे ही गुण गुणहीन व्यक्तियों के संसर्ग में दोष में बदल जाते हैं। यथा, नदियों में मधुर स्वाद वाला पीने योग्य जल प्रवाहित होता है , परंतु वही जल समुद्र के जल में मिल जाता है तो खरा हो जाता है तथा पीने योग्य नहीं रहता। अतः हमें सदा गुणवान लोगों के साथ अर्थात् अच्छी संगति में ही रहना चाहिए।
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साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः
साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
तद् भागधेयं परमं पशूनाम्।। 2 ।।
सरलीकृत्वा (पदविभाग:)-
साहित्य-सङ्गीत-कला-विहीनः
साक्षात्-पशुः पुच्छ-विषाण-हीनः।
तृणं न खादन्न्-अपि जीवमानः
तद् भागधेयं परमं पशूनाम्।।
शब्दार्थाः-
1) विषाणहीनः = सींग के बिना
2) खादन्नपि (खादन् + अपि) = खाते हुए भी
3) जीवमानः = जिंदा रहता हुआ
सरलार्थ -
जो व्यक्ति साहित्य, संगीत तथा कला से विहीन है वह सींग और पूंछ के बिना साक्षात् पशु के समान है। यह पशुओं का बहुत बड़ा सौभाग्य है कि वह घास न खाते हुए भी जीवित रहता हैं। इससे पशुओं के भोजन की सुरक्षा हो गई है।
व्याख्या-
जो व्यक्ति साहित्य (पढ़ाई -लिखाई), संगीत तथा कला (अभिनय, चित्रकला, शिल्प आदि) को नहीं जानता अर्थात् इनमें से किसी क्षेत्र में अच्छे नहीं है वह सींग और पूंछ के बिना भी साक्षात् पशु के समान है। यह पशुओं का बहुत बड़ा सौभाग्य है कि वह घास न खाते हुए भी जीवित रहता हैं। इससे पशुओं के भोजन की भी सुरक्षा हो गयी है। ऐसे अभागे लोग महान पशु कहलाते हैं जो मानव के रूप में जन्म लेकर भी पशुओं की तरह जीवन जीते हैं। अतः हमें किसी न किसी क्षेत्र में अच्छा ज्ञान अवश्य रखना चाहिए।
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लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री
नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः।
विद्याफलं व्यासनिनः कृपणस्य सौख्यं
राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य।। 3।।
पञ्चतन्त्रम् 3.236
शब्दार्थाः-
1) पिशुनस्य = चुगलखोर
2) व्यासनिनः = बुरी लत वालों की
3) नराधिपस्य (नर +अधिपस्य) = राजा का/ के/ की
सरलार्थ-
लालची व्यक्ति का यश, चुगली, करने वाले की दोस्ती, कुकृत्य (,बुरा काम) करने वाले का परिवार, सर्वदा धन की लालसा करने वालेज़ का धर्म, बुरी आदतों (नशा करने) वाले की विद्या, कंजूस का सुख तथा विवेकहीन / उतावले मंत्री वाले राज्य ,का राज्य नष्ट हो जाता है।
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पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं
माधुर्यमेव जन्येन्मधुमक्षिकासौ।
सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनानां
श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।। 4।।
सरलीकृत्वा (पदविभाग:)-
पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं
माधुर्यम् एव जन्येत् मधुमक्षिका असौ।
सन्तः तथैव सम-सज्जन-दुर्जनानां
श्रुत्वा वचः मधुर-सूक्तरसं सृजन्ति।।
शब्दार्थाः-
1) जन्येन्मधुमक्षिकासौ (जन्येत् +मधुमक्षिका+ असौ) = यह मधुमक्खी पैदा करती है।
2) सन्तस्तथैव (सन्तः + तथैव) = वैसे ही सज्जन
3) सृजन्ति = निर्माण करते हैं
सरलार्थ-
जिस प्रकार मधुमक्खी चाहे कड़वा रस पीये अथवा मीठा वह सदा मीठा (शहद) ही उत्पन्न करती है उसी प्रकार सज्जन लोग दुर्जन तथा सज्जन दोनों ही प्रकार के लोगों की बातें सुनकर सदा मीठी वाणी (अच्छी बातें) ही कहते हैं।
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विहाय पौरुषं यो हि दैवमेवावलम्बते।
प्रसादसिंहवत् तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसाः।।5।।
सरलीकृत्वा (पदविभाग:)-
विहाय पौरुषं यो हि दैवम्-एव-अवलम्बते।
प्रसादसिंहवत् तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसाः।।
शब्दार्थाः-
1. विहाय - छोड़कर
2. पौरुषम् - मेहनत
3. यो (यः) - जो
4. हि - निश्चित रूप से
5. दैवम् - भाग्य
6. एव - ही
7. अवलम्बते - निर्भर रहते हैं
6. प्रसाद - महलों
7. सिंहवत् - शेर की तरह
7. तस्य - उसके
8. मूर्ध्नि - सिर पर
9. तिष्ठन्ति - स्थित होते (बैठते) है
10. वायसाः - कौए
सरलार्थ-
जो व्यक्ति अपने पौरुष अर्थात् परिश्रम को छोड़कर भाग्य का सहारा लेता है। उस व्यक्ति की स्थिति महलों में बने हुए उस शेर की तरह हो जाती है जिसके सिर पर कौए बैठते हैं।
अर्थात् उस व्यक्ति का कोई महत्त्व नहीं रह जाता।
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पुष्पपत्रफलछायामूलवल्कलदारुभिः।
धन्या महीरुहाः येषां विमुख यान्ति नार्थिनः।।6।।
सरलीकृत्वा (पदविभाग:)-
पुष्प-पत्र-फल-छाया-मूल-वल्कल-दारुभिः।
धन्या महीरुहाः येषां विमुख यान्ति नार्थिनः।।6।।
शब्दार्थाः-
1. पुष्प - फूल
2. पत्र - पत्ता
5. मूल - जड़
6. वल्कल - पेड़ की छाल
7. दारुभिः - लकड़ियों से
9. महीरुहाः वृक्ष / पेड़
10. येषां जिनके
11. विमुख निराश / बिना प्राप्त किया
12. यान्ति - याचक
13. न - नहीं
14. अर्थिनः - मांगने वाले
सरलार्थ -
फूल, पत्ते, फल, छाया, जड़, छाल, लकड़ी आदि से युक्त पेड़ धन्य हैं। जिनके कारण याचक कभी भी उनसे निराश नहीं होते हैं। अर्थात् पेड़ों के पास देने के लिए बहुत कुछ है। वे कभी भी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाते।
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चिन्तनीय हि विपदाम् आदावेव प्रतिक्रियाः।
न कूपखननं युक्तं प्रदीपदे वह्निना गृहे।। 7।।
सरलीकृत्वा (पदविभाग:)-
चिन्तनीय हि विपदाम् आदौ-एव प्रतिक्रियाः।
न कूपखननं युक्तं प्रदीपदे वह्निना गृहे।।
शब्दार्थाः-
1. चिन्तनीय - सोचना चाहिए
2. विपदाम् - विपत्ति के
3. आदौ - पहले
4. एव - ही
5. प्रतिक्रियाः - हल ढूँढना
6. न - नहीं
7. कूपखननं - कुआं खोदना
8. युक्तं - ठीक
9. प्रदीपदे - प्रज्ज्वलित होने (जलने) पर
10. वह्निना - अग्नि द्वारा
11. गृहे - घर में
सरलार्थ-
विपत्ति के पहले ही समाधान ढूंढ लेना चाहिए। विपत्ति आने के बाद उसका समाधान ढूंढना उसी प्रकार अनुचित है, जैसे घर में आग लगने के बाद कुआं खोदना।
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पठनाय (Lesson in PDF) -
https://drive.google.com/file/d/1egxQmUGEZxdXVDESvta_lwyurwUROKfx/view?usp=drivesdk
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* श्लोका: 1-7, अभ्यास: च
https://youtu.be/C3ekd9Dbs60
By kailash Sharma (अन्वय, अर्थ, शब्दार्थ)
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1.1 पाठ: (मंगलम् , श्लोका: 1-2)
https://youtu.be/J3V6zAYL1Vc
1.2 श्लोका: 3-4
https://youtu.be/9g7AgugdeCE
(By- OnlineSamskrTutorial )
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श्लोका: 1-7, अभ्यास: च
https://youtu.be/Dwah2sZaPKo
(By - Saral Sanskrit Shikshan)
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ये वक्त न ठहरा है ये वक्त न ठहरेगा (गीत)
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