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Showing posts from August, 2019

संस्कृत इंटरनेट रेडियो" इति श्रोतुम्- (To listen sanskrit Radio)

        "संस्कृत इंटरनेट रेडियो" इति 01 श्रोतुम्-           (To listen sanskrit Radio) https://divyavani.org /      Divyavani Sanskrit Radio is an initiative of Sri Aurobindo Foundation for Indian Culture (SAFIC), Sri Aurobindo Society, Puducherry, India. This is the first ever 24 hours online Sanskrit Radio which was started on 15th of August 2013.   Through this, SAFIC globally broadcasts a variety of programmes in Sanskrit. ----------------------------------------                "संस्कृत इंटरनेट रेडियो" इति 02 श्रोतुम्-      सुनिल खांडबहाले द्वारा संस्कृत भारती, नासिक स्थाने। https://tinyurl.com/sanskritradio अथवा https://radio.garden/listen/radio-sanskrit/R0xtFLW0 -----------------------

कृत्वा नव दृढ संकल्पं (Sanskrit Song- Kritva Nav)

कृत्वा नव दृढ संकल्पं (Sanskrit Song- Kritva Nav) कृत्वा नव दृढ संकल्पं  वितरन्तो नव संदेशम् घटयामो नव संघटनं रचयामो नवमितिहासम् || धृ || नवमन्वन्तर शिल्पिन: राष्ट्रसमुन्नति कांक्षिण: | त्यागधना: कार्येकरता: कृतिनिपुण: वयं विषण्ण: || १ || कृत्वा नव दृढ संकल्पम्.... || धृ || भेदभावनां  निरासयन्त: दीनदरिद्रान् समुद्धरन्त: | दु:ख वितप्तान् समाश्वसन्त: कृतसंकल्पा सदास्मरन्त: || २  || कृत्वा नव दृढ संकल्पम्.... || धृ || प्रगतिपथान्नहि विचलेम परम्परां  संरक्षेम | समोत्साहिनो निरुद्वेगीनो नित्य निरंतर गतिशीला: || ३ || कृत्वा नव दृढ संकल्पम्.... || धृ || श्रवनाय- https://drive.google.com/file/d/0B4UJNc1YSXweRzV2eFZlb0FyWjA/view?usp=drivesdk

सागरं सागरीयं नमामो वयम् (Sanskrit Song - Sagaram Sagariyam..)

सागरं सागरीयं नमामो वयम् (Sanskrit Song - Sagaram Sagariyam..) सागरं सागरीयं नमामो वयम्, काननं काननीयं नमामो वयम्। पावनं पावनीयं नमामो वयम्, भारतं भारतीयं नमामो वयम्॥ पर्वते सागरे वा समे भूतले, प्रस्तरे वा गते पावनं संगमे। भव्यभूते कृतं सस्मरामो वयम्, भारतं भारतीयं नमामो वयम्॥ १॥ वीरता यत्र जन्माश्रिता संगता, संस्कृति मानवीया कृता वा गता। दैवसम्मानितं पावनं सम्पदम्, भारतं भारतीयं नमामो वयम्॥ २॥ कोकिलाकाकली माधवामाधवी, पुष्पसम्मानिता यौवनावल्लरी। षट्पदानामिह मोददं गुञ्जनम्, भारतं भारतीयं नमामो वयम्॥ ३॥ पूर्णिमा चन्द्रिका चित्तसम्बोधिका, भावसंवर्धिका चास्ति रागात्मिका। चञ्चलाचुम्बितं पावनं प्राङ्गणम्, भारतं भारतीयं नमामो वयम्॥ ४॥

चल चल पुरतो निधेहि चरणम् (Chal Chal Puruto- Sanskrit Song)

चल चल पुरतो निधेहि चरणम् (Chal Chal Puruto- Sanskrit Song) चल चल पुरतो निधेहि चरणम् सदैव पुरतो निधेहि चरणम् ॥ध्रु॥ गिरीशिखरे तव निज निकेतनम् समारोहणं विनैव यानम् आत्मबलं केवलं साधनम् ॥१॥ पथिपाषाणा विषमा प्रखरा तिर्यन्चोपि च परितो घोरः सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम् ॥२॥ जहीहि भीतिं ह्रिदि भज शक्तिम् देहि देहि रे भगवती भक्तिम् कुरु कुरु सततं धेयस्मरणम् ॥३॥ सुनने के लिए- https://drive.google.com/file/d/0B4UJNc1YSXweUmxWUktqZ092eFk/view?usp=drivesdk    cala cala purato nidhehi caraṇam sadaiva purato nidhehi caraṇam ||dhru|| girīśikhare tava nija niketanam samārohaṇaṁ vinaiva yānam ātmabalaṁ kevalaṁ sādhanam ||1|| pathipāṣāṇā viṣamā prakharā tiryancopi ca parito ghoraḥ suduṣkaraṁ khalu yadyapi gamanam ||2|| jahīhi bhītiṁ hridi bhaja śaktim dehi dehi re bhagavatī bhaktim kuru kuru satataṁ dheyasmaraṇam ||3|| Meaning Go ahead, keep your feet forward Always place the feet forward. Your home is at the top of the mountain. Climb it without any vehicle The only instrument is one's own strength, a

कथा-वाचन (Sanskrit story/ katha)

कथा-वाचन (Sanskrit story/ katha) कक्षा 6, पाठ- 7  बकस्य प्रतिकार:,  प्रश्न 5-    पिपासितः काकः ------- कक्षा 7, पाठ- 2  दुर्बुद्धि विनश्यति, प्रश्न 7   काकः सर्पः कथा ------- कक्षा 7, पाठ- 4  हास्यबालकविसम्मेलनम् प्रश्न 6   नृप वानर कथा ------- कक्षा 8, पाठ- 2  बिलस्य वाणी, प्रश्न 7  कपोतः कथा ------- कक्षा 8, पाठ- 5  कंटकेनैव कंटकम् प्रश्न 5 सिंह मूषक कथा

संस्कृत वाक्य रचना- धातु/लकार परिचय

                   संस्कृत वाक्य रचना- धातु/लकार परिचय वाक्य के मुख्यतः दो भाग होते हैं। 1.कर्ता 2. क्रिया संस्कृत भाषा के वाक्यों  में *क्रिया (Verb)* के लिए *धातु* का प्रयोग की जाती है। यथा- रामः फलं *खादति।*  राम फल *खा रहा है।* Ram is *Eating* an Apple. उपर्युक्त वाक्य में *खादति* क्रिया है जो धातु के रूप में प्रयोग की जाती है। धातुओं के दस लकार होते हैं- " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् ,  लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " । •• वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)। •• इन दस लकारों में से ~~~~ आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है- लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये " टित् " लकार कहे जाते हैं और ~~~~ अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है। •• व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से  पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध (बनाए) किये जाते हैं तब इन " टित् " और &quo